Sunday, August 31, 2014

शादी किसकी: औरत-मर्द की या हिंदू-मुसलमान की?

शादी किसकी: औरत-मर्द की या हिंदू-मुसलमान की?

आजादी के छह दशक से भी ज्यादा बीत जाने के बाद भारत में शादी जैसे निजी मामलों में व्यक्तिगत पसंद नापंसद के अलावा और भी बहुत सी चीजें मायने रखती हैं।

कोई पच्चीस साल पुरानी बात है। पटना में हमारे दो मित्रों ने विवाह का फैसला किया। पुरुष के नाम से मुसलमान और स्त्री के नाम से हिंदू होने का बोध होना स्वाभाविक था।


विवाह संपन्न कराने 'मैरेज रजिस्ट्रार' हमारे पुरुष मित्र के घर पर आए। जहां यह सब कुछ हो रहा था तो उसके बगल में विश्व हिंदू परिषद का दफ़्तर था।


रस्में पूरी हो रही थीं कि पुलिस आ धमकी। उन्हें इसी संगठन की ओर से शिकायत मिली थी कि कोई मुसलमान किसी ब्राह्मण लड़की को भगाकर ले आया है और जबरन शादी कर रहा है। वहां डॉक्टर, वकील, अध्यापक, अनेक पेशों के संभ्रांत लोगों को देख कर, जो दोनों ही धर्मों के थे, पुलिस अचकचा गई।

हमारे एक अध्यापक ने पुलिस दल के मुखिया से कहा, "अरे, दोनों कम्युनिस्ट हैं, ब्राह्मण और मुसलमान नहीं। उसने कहा, ओ, यह बात है! और लौट गया।"